देर रात जब सिरहाने पे सर रखता हूँ
दिन भर उठाए बॉज़ से कंधे दर्द करते है
कभी जिंदगी के बॉज़ उठाए जीने के लिए
कभी जीना भी बॉज़ बन गया ज़िदगी के लिए
कभी रिश्तों के सहारे बॉज़ कम कर दिए
कभी रिश्तें ही दर्द की वजह बन गये
हर सुबह उठता हूँ नई सुबह के लिए
की आज खुद का ही बॉज़ उठा के जी लूँगा
आदत सी हो गयी बॉज़ उठाने की
अब तो खुद का बॉज़ भी कम लगता है
सोजा ए 'मन' आज की रात आराम से
ताकी नींद भी तेरा बॉज़ उठा सके आराम से
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