कोंन गुनाहगार ?

April 12, 2011

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तेरी झील सी आँखों में डूब जाना था मुझको
कम्बख़त तेरे दो आँसू ने किनारे लगा दिया
तेरे होंठों के दो पयमाने भी ना छुए थे अभी
खुद लड़खड़ाते हुए जमाने ने शराबी बना दिया
साथ तेरे मंज़िल पानी थी मुझको ए हमनशीं
तूने मंज़िल पाने को मुझे रास्ता बना दिया
खुदा समझा था ए पत्थर दिल तुझे मैने
अच्छे ख़ासे मानस को पत्थर बना दिया

1 comments :

satyendr sengar said...

wah wah.....kya baat hai साथ तेरे मंज़िल पानी थी मुझको ए हमनशीं.....तूने मंज़िल पाने को मुझे रास्ता बना दिया!! wah...badhaaee... - Satyendr

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