February 26, 2011

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देर रात जब सिरहाने पे सर रखता हूँ
दिन भर उठाए बॉज़ से कंधे दर्द करते है
कभी जिंदगी के बॉज़ उठाए जीने के लिए
कभी जीना भी बॉज़ बन गया ज़िदगी के लिए
कभी रिश्तों के सहारे बॉज़ कम कर दिए
कभी रिश्तें ही दर्द की वजह बन गये
हर सुबह उठता हूँ नई सुबह के लिए
की आज खुद का ही बॉज़ उठा के जी लूँगा
आदत सी हो गयी बॉज़ उठाने की
अब तो खुद का बॉज़ भी कम लगता है
सोजा ए 'मन' आज की रात आराम से
ताकी नींद भी तेरा बॉज़ उठा सके आराम से

February 21, 2011

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लोग कहतें है
जिंदगी तो बेवफा है
जिंदगी चार दिन की है
जिंदगी चार पल की है
इसी लिए में जिंदगी को
एक पल में जीना चाहता हूँ,
तो बाकी के तीन पल
उसे जाता देख सकूँ
उस एक पल को मैं एक
जिंदगी देना चाहता हूँ
तो बाकी के तीन पल
उसे महसूस कर सकें
वो न बेवफा है
न चार पल की है
वो जिंदगी है उसे
जिंदगी ही रहने दो
मन की ही रहने दो

February 4, 2011

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अंजान राहें चलते रहें
रास्तों में रिश्तें मिले
रिश्तों ने संबंधों को मिलाया
संबंध ने बंधन को बनाया
अब सांस लेने में घुटन होती है
काश अंजान रहें मिल जाएँ फिर से
मंज़िल मिल जाएँ कहीं