हिसाब

December 21, 2011

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दिल के कुछ एहसास को कागज में समेट कर भेजा था
जो अल्फ़ाज़ निकले न ज़ुबाँ से उसे भी साथ भेजा था
शायद, काशिद रुक गया होगा कहीं रास्ते में वरना
"मानस" ने आपका नामों-निशा सही लिख कर भेजा था
इंतजार क्या करूँ मैं वक़्त का ? वक़्त रूका न मेरे लिए
जिंदगी की बाकी साँसों का ही हिसाब लिखकर भेजा था

एहसास

December 2, 2011

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जिंदगी बहोत खूबसूरत गुज़री
अगर गमों को साथ ले लूँ तो
मंज़िल भी मिल गयी है मुझे
भटके रास्तों को साथ ले लूँ तो
सबकुछ मिला बिना माँगे ही
गर खोया हुआ साथ ले लूँ तो
सभी फरीस्तों को ही मिला अगर
टूटें रिश्तों को साथ ले लूँ तो
सभी ने साथ दिया उम्र भर
अगर तन्हाइयों को साथ ले लूँ तो
गम-खुशी-आँसू-मुस्कान कुछ भी नहीं
अगर जिंदगी साँसे देना छोड़ दे तो..

इंसानियत ?

September 23, 2011

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आकाश को मिले चाँद, सूरज और सितारे
साथ में सहारा मिला बादलों का
धरती को मिली समुंदर की गहराई
और साथ मिले पर्वतों की उँचाई भी
नदियाँ और पेड़ के मिले सौगाद भी
हमको मिला सब कुछ बिना माँगे ही
नहीं समझ सके रिश्तों की गहराई को
नहीं समझ सके प्यार की उँचाई को
सामे जिंदगी में लेके घूमते रहे तन्हाई को
सूरज की गर्मी ने चुरा लिया पानी धरती से
और वक़्त आने पर
प्यार की बौछार से लौटा भी दिया
फ़र्क इतना है की हमने लिया सब कुछ
इस्तेमाल किया, और लौटना भूल गये

कुछ कर्ज जो नहीं चुकाए अभी

September 14, 2011

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जिंदगी मिली थी किस्तों में
कुछ और किश्त चुकानें बाकी है
रोज सुबह पहनता हूँ नया कफ़न
कुछ और पहनना बाकी है
कर्ज़ दोनों का चुकाना है मुज़को
अदा किसका करूँ पहले ए कफ़न
अभी जिंदगी का चुकाना बाकी है

આશા

September 6, 2011

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સરવર શ્રાવણ માં સજાવ્યા સપના, કે તમે આવશો
મનમંદિર માં વસાવ્યા વરસો તમને, કે તમે આવશો
વરસાદ માં છુપાવ્યા આંસુ વિરહ ના, કે તમે આવશો
રિસાઈ ગયા હતા તમે ને તન છૂટા પડ્યા હતા પણ
દિલ માં અતૂટ આશા હતી કે તમે જરૂર થી આવશો
ભૂમિકા જીવન ની તૈયાર કરી હતી કે તમે આવશો
મારી છેલ્લી ક્ષણો માં લખેલો પત્ર મળશે તમને..
પુસ્તકો માં છુપવેલા ફૂલ લઈ તમે, આવશો ને.....

आशा

August 29, 2011

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बहोत सारे लोग बहुत सारी भाषा

मगर कोई ना बोले प्यार की परिभाषा

शुरुआत करे जो कोई एक बोलना ये भाषा

तो बन जाए एक नई दुनिया की आशा

ना कोई हो दुश्मन ना कोई प्रतिस्पर्धी

ना कोई पराया हो ना कोई अंजाना

हर चेहरे पे हो जिंदगी की अभिलाषा

यही चाहना करते है ना मीले हमे निराशा

एक गुनाह और सही..........

August 28, 2011

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एक गुनाह और सही..........
एक गुनाह छुपाने के लिए दूसरा गुनाह कर बैठे
खुदा समझ तुझे बंदगी करने का गुनाह कर बैठे
कुछ ख्वाहिसे लेकर हम गुज़रे थे तेरे दर से, मगर
तेरी गली के मोड़ से पुकारने का गुनाह कर बैठे
अंज़ामें इश्क़ में दिल टूटने की तावारिख से वाकिफ़ थे
मगर वही वाक़या फिर से दोहराने का गुनाह कर बैठे
आजकल कहाँ मिलते हैं मोती समंदर की तह में, लेकिन
तेरे इश्क़ में डूबकर गोता लगाने का गुनाह कर बैठे
अब क्या बताएँ तुज़े कितने पागल थे तेरे इश्क़ में हम
दिल का राझ खोलने का मासूम सा गुनाह कर बैठे
ढूंढकर लाए कोई एक मसूका, जिसने सही प्यार किया हो
हर बार हमीं, नकाब उठाने का गुनाह कर बैठे
नज़म क्या पढ़ दी अपने महफ़िल में सुरीली आवाज़ से
आपके रसभरे होंठों को चूमने का गुनाह "मानस" कर बैठे
८-२९-२०११

शायद....

August 21, 2011

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शायद..
आँख से आँसुओं का रिश्ता पुराना है
सभी रिश्तों की कसोटी पर साथ देते है
खुशी हो या गम, आँसू हर जगह होते है
मगर ये भी शायद खुद पर ही रोते हैं
पता नहीं चलता कब बह निकलेंगे आँखों से
बहोत मुश्किल है तय करना रिश्तों की तरह
ये साथ निभाते है या साथ छोड़ के जाते हैं

अभागन किश्मत .....

August 17, 2011

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जब भी सहारा ढूँढनें की कोशिश की
बेसहारा कर दिया आपने
हाथ बढ़ाया था उम्मीद के साथ
किनारा कर लिया आपने
क्या शिकवा, क्या शिकायत क्या गिला आपसे
मोका ही नहीं दिया आपने, फिर भी इक
तमन्ना थी आपके साथ दो पल गुजारने की
और जनाज़े को सहारा दे दिया आपने
कब्र से देखने की तमन्ना थी मगर
फूलों की चादर रख दी आपने

प्यार की भाषा

August 4, 2011

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बड़ी आस से दिया था कोरा कागज उनको
कुछ प्यार के दो बोल लिख देंगे, मगर
कश्ती बना कर पानी में बहा दिया
कागज की कश्ती को किनारे नही मिलते
शायद यही लिखना होगा उनको
टूटे दिल के साथ उम्र के पड़ाव पर
फिर मिल गये,दर्द था आँखों में
कश्ती बनाना था तुमको,मेरी नादिया के
क्या लिखाई करती मैं
प्यार की भाषा तो समज़ते नहीं

तेरी तारीफ में दो शब्द....

July 26, 2011

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आँसू जो तूने दिए थे, आज भी उसे संभाल के रख्खा है,
तूने भी तो वो सूख न जाए उसका बखूबी ख़याल रख्खा है
जख्म जो तूने दिए थे वो तो वक़्त के साथ भर जाएँगे
निशान न मिटे उम्रभर, तूने उसका भी तो ख़याल रख्खा है
लोग मिसाल देते रहे हमारे प्यार के,हम तो मुस्कराते ही रहे
परदा उठ ना जाए हक़ीकत से, तूने उसका भी तो ख़याल रख्खा है
दुनिया बहोत छोटी है, कहीं किसी मोड़ पर तो मिलना ही होगा
तूने नज़रें चुराकर रहगुजर से गुजरने का तो ख़याल रख्खा है
एक दिली ख्वाहिश थी रुखसत से पहले, तुज़े माफ़ करने की
लेकिन तूने भी तो गुनाह कबूल ना करने का ख़याल रख्खा है
तेरी इसी आदत ही ने मुज़े चैन से जीने न दिया जानेमन,
मर न जाएँ हम चैन से उसका भी तो ख़याल रख्खा है

हम और वक़्त....मानस

July 20, 2011

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वक़्त वक़्त कि बात है कि वक़्त भी बदल जाता हैं ,
जन्मों जनम का रिश्ता भी पल मे बदल जाता हैं
मह्फ़िल् की तरह पीते थे हम् जब् तक प्यार था हमसे
अब तो आँसू भी पीते है तो , आँखें भी बुरा मान जाती हैं
बारिश की ख्वाहिश थी सबको , आश ही लगाये बैठे थे हम
बिजली गिरा कर घर पर मेरे, बादल आगे निकल जाते है
न जाने क्यूँ शिकायत भी नहीं कर सकते अपने दिल से हम
बुरे वक़्त में साया तो क्या, धड़कन भी साथ छोड़ जाती है

April 30, 2011

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कल रात मैं कवि सम्मेलन में गया था
बड़े बड़े कवियों का महामेला लगा था
कोई भूखे पेट, तो कोई डकार ले रहा था
कोई संतृप्त थे तो कोई मायूष लग रहा था
कल रात मैं कवि सम्मेलन मैं गया थे
कविताएँ कम और शब्द-युद्धज़्यादा लग रहा था
बड़े कवि कविताओं में छोटे लग रहे थे
छोटे कवि नज़र अंदाज़ लग रहे थे
समझ में नहीं आ रहा था की ये कवि थे?
मूज़े तो सारे राजनेता नज़र आ रहे थे
कल रात मैं कवि सम्मेलन में गया था
कविताओं का विषय था जीवन का हास्य रस
ना कविता में हास्य था,ना रस में कवि था
जीवन का तो कहीं नामोनिशान नहीं था
सभी जमें हुए कवि एकदुजे पे तीर साध रहे थे
लेकिन बचाव के लिए तैयारी-कवच भूल गये थे
कल रात मैं कवि सम्मेलन में गया था
कुछ घायल हुए शब्दोंसे, कुछ हाथों के शिकार हुए
कुछ अपने बचाव और वार के इंतजार में थे
रात गयी बात गयी, कुछ शारीरिक निशान छोड़ गयी
दुसरे दिन का अख़बार लोगोंकी हास्यका सबब बन गयी
कवि सम्मेलन से ज़्यादा अख़बार में रस घोल गयी
इसी लिए किताबें कम,अख़बारों की बिक्री बढ़ गयी
कल रात मैं कवि सम्मेलन में...नहीं गया..
अगले दिन का अख़बार खरीद लिया

April 26, 2011

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अंधेरी रात, खुला आकाश,जागता रहा सोई आँखों से
कुछ पत्ते बीनता रहा जो टूटे हुए थे साखों से
जिंदगी कह रही थी मुझे कुछ, बिना जगाए इशारों से
पत्ते थे साये यादों के और रिश्ते थे टूटे साखों से
सुबह होने का इंतजार करता रहा रातभर गीली आँखों से
कुछ अस्थियाँ रिश्तों के ढूँढ लूँगा मनाश बुझी हुई राखों से

April 22, 2011

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मानस भ्रम...
तेरे चले जाने के गम को प्यार समज बैठे
नादान बन कर दो आँसू भी बहा बैठे
एक बार पीछे मूड के तो देखेंगे ज़रूर
इसी इंतज़ार मे ज़िदगी के लम्हें लूटा बैठे
मूड के आए भी तो किसी और के साथ
तस्लिम के लिए ग़लती से सर झुका बैठे
5-22-2011

कोंन गुनाहगार ?

April 12, 2011

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तेरी झील सी आँखों में डूब जाना था मुझको
कम्बख़त तेरे दो आँसू ने किनारे लगा दिया
तेरे होंठों के दो पयमाने भी ना छुए थे अभी
खुद लड़खड़ाते हुए जमाने ने शराबी बना दिया
साथ तेरे मंज़िल पानी थी मुझको ए हमनशीं
तूने मंज़िल पाने को मुझे रास्ता बना दिया
खुदा समझा था ए पत्थर दिल तुझे मैने
अच्छे ख़ासे मानस को पत्थर बना दिया

फर्क इतना ही.......

March 26, 2011

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जब भी कोई हिस्सा कटा शरीर का
खून ही निकला है
आपकी नज़र में आपका खून था
मेरा पानी ही निकला है
दर्द का जब भी कोई नुश्का मिला
आपकी दवा थी
मेरा जहर ही निकला है
मैने जो खोया वो मेरा था
जो पाया वो आपका निकला है
मुश्किलों का मुकाम जब भी ढूँढा
पता आपका ही निकला है

मन के रिश्ते

March 9, 2011

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लोग कहते है रिश्ते बदल जाते है
वक्त के साथ मौसम भी बदल जातें है
सिंचा था खूने जिगर से जिसे
वो लहू के रंग भी बदल जाते हैं
नज़र के ओज़ल होते ही निगाहें बदल
जाती है जबसे इंसान ने सम्भाला है इसे
रिश्तों को कभी खुदा माना जाता था जहाँ
मज़हब के बदलते ही खुदा भी बदल जाते हैं

February 26, 2011

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देर रात जब सिरहाने पे सर रखता हूँ
दिन भर उठाए बॉज़ से कंधे दर्द करते है
कभी जिंदगी के बॉज़ उठाए जीने के लिए
कभी जीना भी बॉज़ बन गया ज़िदगी के लिए
कभी रिश्तों के सहारे बॉज़ कम कर दिए
कभी रिश्तें ही दर्द की वजह बन गये
हर सुबह उठता हूँ नई सुबह के लिए
की आज खुद का ही बॉज़ उठा के जी लूँगा
आदत सी हो गयी बॉज़ उठाने की
अब तो खुद का बॉज़ भी कम लगता है
सोजा ए 'मन' आज की रात आराम से
ताकी नींद भी तेरा बॉज़ उठा सके आराम से

February 21, 2011

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लोग कहतें है
जिंदगी तो बेवफा है
जिंदगी चार दिन की है
जिंदगी चार पल की है
इसी लिए में जिंदगी को
एक पल में जीना चाहता हूँ,
तो बाकी के तीन पल
उसे जाता देख सकूँ
उस एक पल को मैं एक
जिंदगी देना चाहता हूँ
तो बाकी के तीन पल
उसे महसूस कर सकें
वो न बेवफा है
न चार पल की है
वो जिंदगी है उसे
जिंदगी ही रहने दो
मन की ही रहने दो

February 4, 2011

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अंजान राहें चलते रहें
रास्तों में रिश्तें मिले
रिश्तों ने संबंधों को मिलाया
संबंध ने बंधन को बनाया
अब सांस लेने में घुटन होती है
काश अंजान रहें मिल जाएँ फिर से
मंज़िल मिल जाएँ कहीं

अजनबी शहर में...

January 18, 2011

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हर जगह हँसते चेहरे मिले
तेरे अजनबी शहेर में
हर कोई मूज़े अपना सा लगा
तेरे अजनबी शहेर में
तुज़से मिलने के बाद खो गया
तेरे अजनबी शहेर में
कभी सोचा न था यूँ दिल टूटेगा
तेरे अजनबी शहेर में
लगता हैअपना, हर गली नुक्कड़ पे
तेरे अजनबी शहेर में
जैसे हर कोई अदाकार है
तेरे अजनबी शहेर में