यही जिंदगी की छोटी सी दुकान थी

August 27, 2012

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कुछ आँसू थे कुछ मुश्कान थी
यही जिंदगी की छोटी सी दुकान थी
कुछ खरीदा, कुछ मुफ़्त में मिला
कुछ रिश्तेदारी में उधार मिल गया
इसी तरह जिंदगी का व्यापार चल गया
कहाँ होता है ऩफा इस व्यापार में
जो भी ऩफा होता है उसमें से
कुछ कर्ज़ चुकाने में चला जाता है
कुछ रिश्ते निभाने के फर्ज़ में
मगर इन बातों से दुकान अंजान थी
बही-ख़ाता लिखने बैठा तो सही
मगर कलम कांप रही थी
और जिंदगी की दुकान हाँफ रही थी
अब तो धीरे धीरे शाम हो रही थी
दुकान बंद करने का वक़्त हो गया था
इस कदर जिंदगी थक गयी थी जिंदगी से
पता नहीं कल फिर दुकान खुलेगी या नहीं
पता नहीं जिंदगी का कर्ज़ मिटेगा या नहीं
आँसू व्यापार बन गये हैं और
मुश्कान कारोबार बन गये हैं
जिंदगी 'बिचारी' दुकान बन गयी है
रिश्ते मुनाफ़ा करने का आधार बन गये हैं
'मानस' तू भी कहाँ बाकी रहा इन बवाल से
तभी तो सभी बुलाते, तुझे व्यापारी के नाम से

कुछ आँसू थे... कुछ मुश्कान थी 
यही जिंदगी की छोटी सी दुकान थी