यही जिंदगी की छोटी सी दुकान थी

August 27, 2012

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कुछ आँसू थे कुछ मुश्कान थी
यही जिंदगी की छोटी सी दुकान थी
कुछ खरीदा, कुछ मुफ़्त में मिला
कुछ रिश्तेदारी में उधार मिल गया
इसी तरह जिंदगी का व्यापार चल गया
कहाँ होता है ऩफा इस व्यापार में
जो भी ऩफा होता है उसमें से
कुछ कर्ज़ चुकाने में चला जाता है
कुछ रिश्ते निभाने के फर्ज़ में
मगर इन बातों से दुकान अंजान थी
बही-ख़ाता लिखने बैठा तो सही
मगर कलम कांप रही थी
और जिंदगी की दुकान हाँफ रही थी
अब तो धीरे धीरे शाम हो रही थी
दुकान बंद करने का वक़्त हो गया था
इस कदर जिंदगी थक गयी थी जिंदगी से
पता नहीं कल फिर दुकान खुलेगी या नहीं
पता नहीं जिंदगी का कर्ज़ मिटेगा या नहीं
आँसू व्यापार बन गये हैं और
मुश्कान कारोबार बन गये हैं
जिंदगी 'बिचारी' दुकान बन गयी है
रिश्ते मुनाफ़ा करने का आधार बन गये हैं
'मानस' तू भी कहाँ बाकी रहा इन बवाल से
तभी तो सभी बुलाते, तुझे व्यापारी के नाम से

कुछ आँसू थे... कुछ मुश्कान थी 
यही जिंदगी की छोटी सी दुकान थी

July 23, 2012

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कब तक महफूज़ रखूं अपने दो हाथों से,
उन लौ को आँधियों से
जब की बाती ने ही भरोसा छोड़ दिया है,
सुबह होने का
ज़ेरे-आब में सख्सियत मिट गयी इंशा तेरी,
किनारे खड़े खड़े
गनीमत समझ ए ख़ुदा नहीं माँगा सबूत तुझसे,
तेरे ख़ुदा होने का
दिल कभी इतना मायूस न हुआ 'मानस' मेरा
टूटने पर भी
लोगों ने न जाने क्यूँ सारे इल्ज़ाम लगाए मुझ पर
तुझसे जुड़ा रहने का
7-23-2012

May 30, 2012

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जिंदगी को जब भी करीब से देखता हूँ
हर बार अलग अलग सी दिखाई देती है
तेरी ज़ुल्फो को जब जब सहलाता हूँ
लगता है जिंदगी कुछ उलझ सी गयी है
तेरी उदास आँखों में जब नमी देखता हूँ
ऐसा लगता है जैसे छत टपक रही हो
जिंदगी को किस नज़रिए से देखूं
हर बार अलग ही दिखाई देती है
जब जब कदम बढ़ता हूँ तेरी तरफ
लगता है जैसे मंज़िल भटक गयी हो
सब कुछ सही था मगर न जाने क्यूँ
हर जगह ग़लत ही करार दिया गया हूँ
जो हरदम करीब रहती थी मेरी साँसों के
उसी जिंदगी का दम घुटता है करीब आने से
जिंदगी को जब भी करीब से देखता हूँ
हर बार अलग अलग सी दिखाई देती है

May 7, 2012

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नहीं आता मुझे जिंदगी को सजाकर रखना''मन' की बात सब को बता देता हूँ मैं
नहीं छुपा सकता राझ घर की चार दीवारों में
हर अजनबी को घर का पता बता देता हूँ मैं
नहीं एक भी दुश्मन मेरे, फक्र है इस बात का मुझे
हर किसी को बस अपना दोस्त समझ लेता हूँ मैं
औकात क्या है मेरी ये बताने के लिए
हर महफ़िल में बाक़ायदा बुलाया गया है मुझे
फिर भी उनकी शान में दो शेर सुना देता हूँ मैं
नहीं आता मुझे जिंदगी को सजाकर रखना

''मन' की बात सब को बता देता हूँ मैं

April 25, 2012

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बहोत दौड़ लिया जिंदगी की जद्दो-जहत में
अब ठहर ज़रा जिंदगी के लिए
जी लया जी भर के खुद के लिए
थोड़ा जी ले जिंदगी के लिए, फिर देख
थक गया होगा खुद का बोझ उठाकर
किसी ग़रीब का दर्द उठाकर देख
बरसों से यही रोना है की हम इंसान हैं
कभी दर्द से जुदा नहीं हो सकते
कहना बहोत है आसान की हम इंसान हैं
पहले इंसान बन कर के तो देख
बहोत रूलाया है तूने सब को
अपनी खुशियों के लिए
कभी अपनी ही आँख के
आँसू बन कर के तो देख
दर्द को तूने देखा होगा ग़रीब का करीब से
कभी खुद दर्द का एहसास कर के तो देख
इलाज किए होंगे तूने कई मरीजों के ए हकीम
कभी खुद मरीज बन कर के तो देख

सच ...

April 14, 2012

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धीरे धीरे शाम ढल रही है
परछाईयाँ लंबी हो रही है
लेकिन किस खूबसूरती से
जिंदगी कम हो रही है

भागाकार

April 10, 2012

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તમે બન્યા આકાશ મને ધરતી બનાવી દીધી
અંતરકેવી રીતે મટે, તે બતાવવા નું ભૂલી ગયા
હું બની નદી અને તમને પર્વત બનાવી દીધા
ચંચલ બની વહી તમારા ચરણોં પાસે થી પણ
તમે નીચા નમી સ્નેહ વરસાવા નું ભૂલી ગયા
આ પ્રેમ છે,અહીં દરેક ફરિયાદ માં પણ પ્યાર છે
'માનસ' હવે સમય બદલાઈ ગયો છે, સમજી લે
પ્યાર ની પણ કિંમત, તે હવે બની વ્યાપાર છે
હૃદય ની કોરી સ્લેટ પર ઍક્ડો ઘૂંટાયો માંડ ત્યાં
કોને ખબર કે પ્રેમ માં તો ફક઼્ત ભાગાકાર છૅ
ફક઼્ત ભાગાકાર છે....

गम का एहसास

April 4, 2012

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अगर वक़्त मिल जाए कभी, हमारी महफ़िल में आ जाना
आपको हम तन्हाई का मतलब समझा देंगे
महफ़िल सजाने के लिए लगाए पर्दों के पीछे छिपे
दर्दे-राज में हमराज़ भी बना लेंगे
आपको जिन लोंगों ने सर आँखों पे बिठा रखा था
वो अब हमारी महफ़िल में बेहोश बैठे हैं
उनके दिलों पे बनी सिलवट भी दिखा देंगे
जो मधुर अल्फ़ाज़ आपके दिलों बहलाते रहे
मानस के दिलों से निकले उन अल्फाजों का
एहसासे दर्द भी बता देंगे
और बहोत कुछ बताना है ए हुश्ने-चमन तुमको
कैसे डूब जाते हैं 'दर्द' महफ़िल में वो भी बता देंगे
हो सकता है की तुम खो जाओ हमारी महफ़िल में
मगर जानेमन तुम्हें घर का रास्ता भी बता देंगे
हमारा क्या हम तो बिखरे हुए दिलों की महफ़िल यूँ ही
सजाते रहेंगे और हुश्न से मिले दर्द छुपाते रहेंगे
अगर शराब ग़लत कर सकती हर गम को
महफ़िल में इतना शोर शराबा न होता
कफ़न ओढ़ कर बैठे उन मरीजों का पता भी बता देंगे

बदलना जिन्दगी है ?

March 1, 2012

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समंदर भी वही थे किनारे भी वही थे
मगर लहरें बदल गयीं थी
पत्तों ने सहारा लिया था साखों का
हवा के झोखों ने जुदा कर दिया
उन्हें क्या पता की मौसम बदल गये थे
दिन भर बॉज़ उठाया था जिंदगी का
अब तो सहारे भी थे,मगर क्या पता की
कंधे वही थे सिर्फ़ बॉज़ बदल गये थे
जिंदगी के सफ़र में आगे बढ़ना था
रास्ते भी सही थे मंज़िल भी वही थी
सिर्फ़ मालिके मकान बदल गये थे
सच कभी बदलता नहीं है ऐसे सुना था
सवाल वही थे जवाब भी वही थे
जवाबों के मायने बदल गये थे
बहुत रात हो चुकी 'मानस' अब सो जा
शब्दों को भी सोने दे, मगर उन्हें कहाँ चैन?
वो तो अभी भी करवट बदल रहे थे
शब्द भी वही थे शब्दकोष भी वही थे
हर बात के मतलब बदल रहे थे
सोचा, चलो वापिस चलता हूँ जहाँ से आया था
वापसी का किराया भी दे कर आया था
किनारे भी वही थे कश्ती भी वही थी
माझी ही बदल गये थे
समंदर भी वही थे किनारे भी वही थे
मगर लहरें बदल गयीं थी

अधूरापन

February 21, 2012

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रात ढल गयी पर सुबह ही नहीं आई,
हरबार मेरे हिश्से में अमास ही आई
जागता रहा रात भर इंतज़ार मे तेरे
सपनें में सिर्फ़ तन्हाई ही नज़र आई
लोग कैसे जोड़ लेते हैं जुदाई के रिश्ते
'मानस' हर जगह साजिश ही नज़र आई

January 10, 2012

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દર્દ પણ તમે આપો છો અને દવા પણ
ઉપર થી પ્રણય ને જલદ હવા પણ
કેમ બની ગયા અવાક હવે, જ્યારે
દર્દ નો અહસાહ થયો તમને પણ
................
કેટલીક વાર્તા લખી હતી શબ્દો વગર
જાણે જિંદગી જીવી હતી શ્વાસ વગર
આ તો આઁખોં નો વ્યવહાર હતો જાણે
છેલ્લા પાને પહોંચી ગયા તમે,
વાર્તા નો સાર વાંચ્યા વગર
.................
बहुत संभाल कर रखा था शबाबे अब्र को
नहीं संभाल शका था तेरी हयाते सब्र को
अब क्या करूँ इन फूलों का बतला दो मुझे
जो तुमने चढ़ाए थे कभी मेरी निशानी पे
पलट कर देख नहीं शकता मैं तेरी कब्र को
............
તમે આવ્યા અને પગરવ પણ ના થયો
કદાચ સમય ની સાથે આવ્યા હશો
ઝાઝો ફરક નથી તમ બંને વચ્ચે
ગયા પછી જ પગલા સંભળાય છે.