April 30, 2011

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कल रात मैं कवि सम्मेलन में गया था
बड़े बड़े कवियों का महामेला लगा था
कोई भूखे पेट, तो कोई डकार ले रहा था
कोई संतृप्त थे तो कोई मायूष लग रहा था
कल रात मैं कवि सम्मेलन मैं गया थे
कविताएँ कम और शब्द-युद्धज़्यादा लग रहा था
बड़े कवि कविताओं में छोटे लग रहे थे
छोटे कवि नज़र अंदाज़ लग रहे थे
समझ में नहीं आ रहा था की ये कवि थे?
मूज़े तो सारे राजनेता नज़र आ रहे थे
कल रात मैं कवि सम्मेलन में गया था
कविताओं का विषय था जीवन का हास्य रस
ना कविता में हास्य था,ना रस में कवि था
जीवन का तो कहीं नामोनिशान नहीं था
सभी जमें हुए कवि एकदुजे पे तीर साध रहे थे
लेकिन बचाव के लिए तैयारी-कवच भूल गये थे
कल रात मैं कवि सम्मेलन में गया था
कुछ घायल हुए शब्दोंसे, कुछ हाथों के शिकार हुए
कुछ अपने बचाव और वार के इंतजार में थे
रात गयी बात गयी, कुछ शारीरिक निशान छोड़ गयी
दुसरे दिन का अख़बार लोगोंकी हास्यका सबब बन गयी
कवि सम्मेलन से ज़्यादा अख़बार में रस घोल गयी
इसी लिए किताबें कम,अख़बारों की बिक्री बढ़ गयी
कल रात मैं कवि सम्मेलन में...नहीं गया..
अगले दिन का अख़बार खरीद लिया

April 26, 2011

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अंधेरी रात, खुला आकाश,जागता रहा सोई आँखों से
कुछ पत्ते बीनता रहा जो टूटे हुए थे साखों से
जिंदगी कह रही थी मुझे कुछ, बिना जगाए इशारों से
पत्ते थे साये यादों के और रिश्ते थे टूटे साखों से
सुबह होने का इंतजार करता रहा रातभर गीली आँखों से
कुछ अस्थियाँ रिश्तों के ढूँढ लूँगा मनाश बुझी हुई राखों से

April 22, 2011

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मानस भ्रम...
तेरे चले जाने के गम को प्यार समज बैठे
नादान बन कर दो आँसू भी बहा बैठे
एक बार पीछे मूड के तो देखेंगे ज़रूर
इसी इंतज़ार मे ज़िदगी के लम्हें लूटा बैठे
मूड के आए भी तो किसी और के साथ
तस्लिम के लिए ग़लती से सर झुका बैठे
5-22-2011

कोंन गुनाहगार ?

April 12, 2011

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तेरी झील सी आँखों में डूब जाना था मुझको
कम्बख़त तेरे दो आँसू ने किनारे लगा दिया
तेरे होंठों के दो पयमाने भी ना छुए थे अभी
खुद लड़खड़ाते हुए जमाने ने शराबी बना दिया
साथ तेरे मंज़िल पानी थी मुझको ए हमनशीं
तूने मंज़िल पाने को मुझे रास्ता बना दिया
खुदा समझा था ए पत्थर दिल तुझे मैने
अच्छे ख़ासे मानस को पत्थर बना दिया