manash

July 1, 2013

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खाक हो जाऊँगा तुमसे जुदा होने पर
फ़िज़ा में घुल जाऊँगा कहीं हवा की तरह
कोई एहसास भी न होगा तुम्हें मेरे होने का
सूखे पत्ते की तरह हवा में बिखर जाऊँगा
रेत की दीवार पे, मेरी तश्वीर बनाई थी तूने
लहर दर लहर लकीर बन बन धूल जाऊँगा
कभी भी न रखना अपनी ज़ूल्फ़ो को खुला सनम
उड़ा के तेरे बालों को अपना एहसास दिला जाऊँगा
कभी ये भरम न रखना की मेरी हस्ती ही न थी
तेरे कदमों की हर आहट में मेरी आह सुना जाऊँगा
हर बार जब दौड़ोगी तुम दरवाजा खोलने के लिए
कोई न होगा तेरे दर पर, में तो वहीं से लॉट जाऊँगा
"मानस" ७-१-२०१३