September 5, 2010

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दूर तक निगाह डाली जिंदगी कहीं नहीं थी
महसूस किया तो कुछ साँसें चल रही थी
हर कोई कंधों पे अपनी लास उठाए घूम रहा था
बॉज़ कितना होगा उसका ये एहसास नहीं था
ज्यों जिंदगी कम हो रही थी बॉज़ बढ़ रहा था
सोचा जा के सुनाउ कहानी किसी और को
हर कोई किसी और को ढूँढ रहा था
सब कुछ था तेरे पास फिर भी अकेला क्यूँ हो गया
शायद जिंदगी अपने अंदर ही कुछ
अपनों को ढूँढ रही थी
दूर तक निगाह डाली जिंदगी कहीं नही थी
मानस.......

khavab

September 3, 2010

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हर तरफ कहीं ना कहीं गम है
सब कुछ है फिर भी जिंदगी कम है
थोड़ा है मेरे पास आपकी तुलना में
भूल गया उनको जिनके पास हमसे भी कम है
जिनके पास ज़्यादा है वो बाँटना नहीं चाहते
दूसरा कोई बड़ा हो हमसे हम नहीं चाहते
यही वजह है दूरियाँ बढ़ जाती है और
जिंदगी एक मज़ाक बन के रह जाती है
मैं एक ऐसी जिंदगी की तलाश में हूँ
जहाँ सब के पास सबकुछ हो और
कहीं कोई भी कहीं उदास ना हो
मैं एक ऐसी जिंदगी की तलाश में हूँ
जहाँ सूरज की किरणों का उजाला हो
गम के साए नज़र ना आए ना हो
उदासी कभी किसी के चेहरे पे
मैं एक ऐसी जिंदगी की तलाश में हूँ
जहाँ रीश्तों के सहीं मायने समझे जाए
आई लव यू होंठों से नहीं दिल से निकलें
और आँखों में नज़र आए
मैं जानता हूँ ये मुमकिन नहीं
हो सके तो मेरे ख्वाब कोई सच कर दिखाए