May 3, 2013

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एक शाम थकी हुई जिंदगी की छाँव के नीचे
खुले आसमान के नीचे लेटे आँखें मीचे
देख रहा था मूड के क्या छोड़ आए पीछे
न जाने किन किन रिश्तों को जोड़ आए थे
या एक को पाने के लिए दूसरा छोड़ आए थे?
पता नहीं क्या खोया था थोड़ा पाने के लिए

सीधे सीधे रास्ते पे बहुत से मोड़ आए थे
मंज़िल के पास से गुज़रा मगर खो सा गया था
जो कभी मेरा हाथ पकड़ के चला करते थे
उनके स्पर्श का एहसास पीछे छोड़ आए थे

ना कोई आस, ना कोई एहसाह, ना फरियाद
जाने 'मन' को मार के आगे निकल आए थे
आज भी वो आँखे नहीं मिला सकते हमसे
कुछ ऐसे सवालात जवाबों के सामने छोड़ आए थे
manash

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