September 5, 2010

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दूर तक निगाह डाली जिंदगी कहीं नहीं थी
महसूस किया तो कुछ साँसें चल रही थी
हर कोई कंधों पे अपनी लास उठाए घूम रहा था
बॉज़ कितना होगा उसका ये एहसास नहीं था
ज्यों जिंदगी कम हो रही थी बॉज़ बढ़ रहा था
सोचा जा के सुनाउ कहानी किसी और को
हर कोई किसी और को ढूँढ रहा था
सब कुछ था तेरे पास फिर भी अकेला क्यूँ हो गया
शायद जिंदगी अपने अंदर ही कुछ
अपनों को ढूँढ रही थी
दूर तक निगाह डाली जिंदगी कहीं नही थी
मानस.......

2 comments :

Amit Chandra said...

मानस जी पढ़कर मजा आ गया।

Deepak Saini said...

मानस जी, मेरे मन की बात कह दी आपने,
बहुत खूब ।

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