April 26, 2011

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अंधेरी रात, खुला आकाश,जागता रहा सोई आँखों से
कुछ पत्ते बीनता रहा जो टूटे हुए थे साखों से
जिंदगी कह रही थी मुझे कुछ, बिना जगाए इशारों से
पत्ते थे साये यादों के और रिश्ते थे टूटे साखों से
सुबह होने का इंतजार करता रहा रातभर गीली आँखों से
कुछ अस्थियाँ रिश्तों के ढूँढ लूँगा मनाश बुझी हुई राखों से

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