एक गुनाह और सही..........

August 28, 2011

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एक गुनाह और सही..........
एक गुनाह छुपाने के लिए दूसरा गुनाह कर बैठे
खुदा समझ तुझे बंदगी करने का गुनाह कर बैठे
कुछ ख्वाहिसे लेकर हम गुज़रे थे तेरे दर से, मगर
तेरी गली के मोड़ से पुकारने का गुनाह कर बैठे
अंज़ामें इश्क़ में दिल टूटने की तावारिख से वाकिफ़ थे
मगर वही वाक़या फिर से दोहराने का गुनाह कर बैठे
आजकल कहाँ मिलते हैं मोती समंदर की तह में, लेकिन
तेरे इश्क़ में डूबकर गोता लगाने का गुनाह कर बैठे
अब क्या बताएँ तुज़े कितने पागल थे तेरे इश्क़ में हम
दिल का राझ खोलने का मासूम सा गुनाह कर बैठे
ढूंढकर लाए कोई एक मसूका, जिसने सही प्यार किया हो
हर बार हमीं, नकाब उठाने का गुनाह कर बैठे
नज़म क्या पढ़ दी अपने महफ़िल में सुरीली आवाज़ से
आपके रसभरे होंठों को चूमने का गुनाह "मानस" कर बैठे
८-२९-२०११

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