April 25, 2012

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बहोत दौड़ लिया जिंदगी की जद्दो-जहत में
अब ठहर ज़रा जिंदगी के लिए
जी लया जी भर के खुद के लिए
थोड़ा जी ले जिंदगी के लिए, फिर देख
थक गया होगा खुद का बोझ उठाकर
किसी ग़रीब का दर्द उठाकर देख
बरसों से यही रोना है की हम इंसान हैं
कभी दर्द से जुदा नहीं हो सकते
कहना बहोत है आसान की हम इंसान हैं
पहले इंसान बन कर के तो देख
बहोत रूलाया है तूने सब को
अपनी खुशियों के लिए
कभी अपनी ही आँख के
आँसू बन कर के तो देख
दर्द को तूने देखा होगा ग़रीब का करीब से
कभी खुद दर्द का एहसास कर के तो देख
इलाज किए होंगे तूने कई मरीजों के ए हकीम
कभी खुद मरीज बन कर के तो देख

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